‘चला संगी रामगढ़ देखे-बुले जाबो, सरगुजा के महिमा सुघर गीत दुनो गाबो’ रामगढ़ महोत्सव में हुआ सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन
अम्बिकापुर। रामगढ़ महोत्सव में विधायक राजेश अग्रवाल के कुशल मार्गदर्शन में जिला प्रशासन के द्वारा सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें सरगुजा के कवियों द्वारा राम, रामगढ़ और आषाढ़- जैसे विषयों पर सरस कविताओं की प्रस्तुति दी गई। श्रोताओं ने देर शाम तक कार्यक्रम का भरपूर आनंद उठाया। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन कवि संतोष सरल ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ गीतकार रंजीत सारथी ने सरगुजिहा में सरस्वती-वंदना- घरी-घरी तोर पइयां बंदव, हमरो ले-ले जोहार दाई- से किया। आशुकवि विनोद हर्ष ने कटते जंगल और उसके दुष्प्रभावों पर ख़ासी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा- सतपुड़ा-सी वादियां छोटे-मोटे अबूझमाड़ रहने दो। बदौलत इन्हीं के जलचक्र धरा पर आषाढ़ रहने दो! कवि संतोष सरल ने अप्रतिम प्राकृतिक सुषमा से सम्पन्न रामगढ़ को देखने जाने की सहज अभिलाषा व्यक्त की- चला संगी रामगढ़ देखे-बुले जाबो, चला संगी रामगढ़ घूमे-फिरे जाबो। सरगुजा के महिमा सुघर गीत दुनो गाबो! कवयित्री माधुरी जायसवाल ने रामगढ़ को ऋषि-मुनियों की धरती बताया- ऋषि-मुनियों की यह धरा इतनी पावन व सुंदर है। प्रभु राम की चरण रज से धन्य यहां का कण-कण है। कविवर श्यामबिहारी पाण्डेय ने इसे राम से भी बड़ा बताने में ज़रा भी संकोच नहीं किया। उन्होंने कहा- राम का नाम लेकर खड़ा हो गया, रामगढ़ राम से भी बड़ा हो गया! कवयित्री राजलक्ष्मी पाण्डेय ने रामगढ़ की भूमि की महिमा का गान किया। उन्होंने कहा- मैं रामगढ़ की भूमि हूं। ऐतिहासिक हूं, पुरातात्विक हूं, सांस्कृतिक हूं, आध्यात्मिक हूं! महाकवि कालिदास ने रामगढ़ की पर्वत-श्रृंखलाओं में अपने विश्वप्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘मेघदूतम्’ की रचना की थी। कवयित्री अर्चना पाठक ने अपने काव्य में महाकवि कालिदास को उपमा देने में अनुपम बताया- कालिदास-जैसी उपमा न कोई दे सका है। शब्द-योजना में आप सबसे महान् हैं। प्रतिभा से युक्त, अभ्यास में भी हैं निपुण, बोधयुक्त, भावयुक्त आप गुणवान् हैं!
कवि-सम्मेलन में भगवान् राम पर अनेक उत्कृष्ट कविताओं की प्रस्तुति दी गई। कवयित्री आशा पाण्डेय ने भगवान् राम से दावनरूपी मानव के प्रतिकार का अनुरोध किया- जिसने शबरी के प्रेम-समर्पण का अभिनंदन स्वीकार किया, जिसने सीताहरण किया उस रावण का संहार किया। मानवरूपी दानव का अब तो प्रभु प्रतिकार करो। महक सनातन की फैले, ऐसी मलय-बयार करो! कवयित्री पूनम दुबे ‘वीणा’ ने भगवान् राम को तारणहार बताया- राम को मान ले तू भी तर जाएगा, ध्यान कर ले ज़रा तू संवर जाएगा! वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा ने भगवान् राम को सर्वगुणसम्पन्न बताया- रघुकुल भूषण श्रीरामचंद्र-सा मर्यादा रक्षक न हुआ। कहना कोई अत्युक्ति नहीं, उन-सा ना कोई अवतीर्ण हुआ। जो सर्वगुणसम्पन्न शिरोमणि सर्वरूप में होते हैं, वो सहज मनुज तन न होकर, साक्षात् ब्रह्म ही होते हैं! वरिष्ठ कवि एसपी जायसवाल ने अपने काव्य में वनगमन के समय का मार्मिक चित्रण किया- राम वन को चल रहे थे, पीछे-पीछे चल रही थी जानकी। कंटकाकीर्ण थी डगर, सिसक रही थी जानकी! दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहों में रामनाम का जाप करते रहने का आव्हान किया- रामनाम जपते रहो, जिसे जपे हनुमंत। पता नहीं इस देह का, कब हो जाए अंत! सुत, दारा, धन-सम्पदा, साथ न देंगे मीत। भवभयहारी राम से, कर लो भाई प्रीत। गीतकवि कृष्णकांत पाठक ने भी यही अनुनय किया- श्रीचरणों में दिल को लगाया नहीं तो बता दे किया तूने क्या उम्रभर। राम-सीता का गर नाम गाया नहीं तो बता दे किया तूने क्या उम्र भर! कविवर राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने भगवान् राम का निवास प्रत्येक हृदय में बताया- जगत् के पालक उसका नाम। बसे हैं हर धड़कन में राम। रोम-रोम में छवि उनकी, है प्रभु को मेरा प्रणाम!
कवि-सम्मेलन में वरिष्ठ गीतकार देवेन्द्रनाथ दुबे का चर्चित गीत- ‘तेरी भी और मेरी भी’ को सबने सराहा। कवि प्रकाश कश्यप ने रामेश्वर भगवान् शिव को भी अपने गीत में याद किया- शिवशंकर हैं औघड़दानी, जिनके शीश पर गंगा का पानी। शिव कहलाते डमरूधारी, चले नंदी की करके सवारी। अंग-अंग में विभूति रमानी! इनके अलावा कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि डॉ. सपन सिन्हा, राजेन्द्र विश्वकर्मा, जयंत खानवलकर और अनिता मंदिलवार ने भी अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ कर कवि-सम्मेलन को सरस और यादगार बनाया। अंत में कवियों को जिला प्रशासन की ओर से स्मृति चिन्ह और प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विधायक राजेश अग्रवाल और अनुविभागीय अधिकारी उदयपुर बनसिंह नेताम विशेष रूप से उपस्थित रहे। आयोजन को सफल बनाने में जिला परियोजना समन्वयक रविशंकर तिवारी, सहायक परियोजना समन्वयक करुणेश श्रीवास्तव, जिला परियोजना अधिकारी गिरीश गुप्ता, सुनीता दास और संगीता तिवारी का योगदान सराहनीय रहा।
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